इस महीने के लास्ट दिन 30 जून से भक्त बाबा अमरनाथ के दर्शन कर पाएंगे इस साल जम्मू कश्मीर की अमरनाथ यात्रा 11 अगस्त तक रहेगी बाबा अमरनाथ की गुफा का इतिहास हजारों साल पुराना है गुफा के अंदर बर्फीले पानी की बूंदें लगातार टपकती रहती है इन्हीं बूंदों से लगभग 10 से 12 फ़ीट ऊँचा बर्फ का शिवलिंग बन जाता है ऐसा माना जाता है की इसी गुफा में शिव जी ने माता पार्वती को अमरता का रहस्य बताया था
अमरनाथ शवलिंग की ऊंचाई घटने -बढ़ने का संबंध चन्द्रमा से है पूर्णिमा पे शिवलिंग अपने पुरे आकर में होता है जबकि अमावस्या पर शिवलिंग का आकर कुछ छोटा हो जाता है
बाबा अमरनाथ की गुफा और श्रीनगर के बीच की दुरी लगभग 145 किलोमीटर है ये गुफा हिमालय पर समुद्र तल से लगभग 13 हजार फ़ीट की ऊंचाई पर है
गुफा में प्राकृतिक रूप से शिवलिंग बनता है शिवलिंग के साथ ही यहां गणेश जी पार्वती जी भैरव महाराज के हिमखंड भी बनते है
बाबा अमरनाथ की यात्रा दो रास्तों से की जाती है एक रास्ता पहलगाम और दूसरा सोनमर्ग बालटाल से आता है इस यात्रा के लिए सबसे पहले पहलगाम या बालटाल पहुंचना होता है इसके बाद पैदल यात्रा की जाती है
पुराने समय में माता पार्वती शिव जी से अमरता का रहस्य जानना चाहती थी
जब भगवान शिव जी को अमर कथा सुनाने ले जा रहे थे तो उन्होंने अपने साथ के अनंत नागों को अनंतनाग में छोड़ दिया था और माथे के चंदन को चंदनबाड़ी में उतर दिया और अन्य पिस्सुओं को पिस्सू टॉप वाले क्षेत्र में और गले के शेषनाग को शेषनाग नाम की जगह पर छोड़ दिया था ये सभी स्थान अभी भी अमरनाथ यात्रा के रस्ते में दिखाई देते है
शिव ने अमरनाथ वाली गुफा में ही देवी को अमरता का रश्य बताया था ऐसा माना जाता है की इस रहस्य को एक शुक नामक कबूतर से सुन लिया था
वैसे तो गुफा का इतिहास हजारों साल पुराना है लेकिन ऐसा माना जाता है की सबसे पहले एक चरवाहे को इस क्षेत्र में कोई संत मिले थे यह घटना करीब -करीब 300 से 400 साल पुरानी बताई जाती है
संत ने चरवाहे को कोयले से भरी हुई एक पोटली दी थी जब चरवाह अपने घर पहुंचा और पोटली को खोला तो उसमें सोना हो गया था यह चमत्कार देखकर वह चरवाहा फिर से संत को खोजने उसी जगह पर पहुंच गया और उस संत को खोजते -खोजते चरवाहे को अमरनाथ की गुफा दिखाई दी