“अरे इतना तो जुर्म ना ढा। मेरा पूरा बजट बिगड़ जाएगा। डोंट बी सो ग्रीडी प्लीज़…।इनु’’
“आई डोंट नो, राखी बंधवानी है तो पैसे तो देने पड़ेंगे भाई। नहीं तो कोई सस्ती बहन ढूंढ़ लो।”
“कुछ तो रहम कर बहना!’’
“नो मीन्स नो, जल्दी बोलो बंधवाना है कि नहीं?”
उसके बाद मेरे बेटे ईशान ने हथियार डाल दिए। अपना हाथ आगे कर कहा,“चल तू भी क्या याद करेगी, बांध राखी।’’
ये इशु यानी ईशान और इनाया यानी इनु की राखी के दिन की नोक झोंक थी। बेटा ईशान अभी अभी एंजीनियरिंग ख़त्म कर कैम्पस इंटरव्यू से एक बड़ी कम्पनी में नौकरी कर रहा था।
अभी एक साल इंटर्न्शिप चलनी थी। कल ही बेचारे के हाथ पहली तनख़्वाह आई थी। आज लूटने चली थी उसकी छोटी बहन। ईशान इनाया से तीन साल बड़ा था। बचपन से ही इशु अपनी बहन को बहुत प्यार करता था और उसका बहुत ख़याल भी रखता था। मुझे अभी भी याद है उसकी पॉटी तक साफ़ करने में मेरी मदद करता था।
इनु घर पर सबसे छोटी थी और सबकी चहेती भी। कोरोना के लॉकडाउन और डर की वजह से जहां पिछले डेढ़ साल से जहां ईशान वर्क फ्रॉम होम कर रहा था, वहीं इनाया भी ऑन लाइन क्लासेस अटेंड कर रही थी। दोनों भाई-बहन आपस में लड़ते-झगड़ते पर एक-दूसरे पर जान भी छिड़कते थे।
पहली बार राखी बंधवाने के बाद जब ईशान थोड़ा बुझा-सा लगा। मेरे पूछने पर फीकी हंसी हंसते हुए कहा,“लुटेरी है आपकी बेटी और लालची भी। लूट लिया मुझे। पूरे एक लाख रुपए अपने अकाउंट में ट्रान्स्फ़र करवा लिए कमीनी ने।”
कमीनी और लालची दो शब्दों ने मुझे बरसों पहले ला पटका। ठीक इसी तरह क़रीब पैंतीस साल पहले मैंने भी अपने भाई की इसी तरह जेब ख़ाली की थी। भैय्या ना तो उदास हुए और ना ही अम्मा से इसकी शिकायत की।
मेरे भैय्या संतोष और मैं सविता दो भाई-बहन हैं। भाई संतो मुझसे इसी तरह ढाई साल बड़े थे पर शायद मैं सवि उनकी ही बेटी थी अम्मा-पापा की कम। भैय्या राम भगवान की तरह आदर्श बेटे और भाई थे। रोज़ रात पापा का पैर दबाते थे, अम्मा के साथ कभी-कभी रोटी तक बेलवा देते थे।
अगर कभी मुझे पैर दबाने कहा जाता तो मैं पापा के पैर में चुंटी काट देती। अम्मा से तो दूर भागती थी, ना जाने कौन सा काम बता दें। मेरी ये बदमाशियां पापा और भाई का मन मोह लेती। भाई मां को समझाता,“रहने दो ना अम्मा सवि शादी हो जाने के बाद हमें याद करेगी।”
भैय्या मेरे ड्राइवर थे यानी कहीं भी जाना हो, बेचारे साइकल पर पीछे बिठा मुझे छोड़ आते। अपना सारा प्रोग्राम मेरी सहूलियत के अनुसार तय करते। मेरी हर कज़िन और सहेली हमारे प्रेम को देख हैरान रहती। वे अक्सर कहतीं,‘इतना प्रेम तो नीति शिक्षा की पुस्तक में ही दिखाई देता है।’ हर राखी और भाई दूज अपने साल भर के जमा पैसे मुझ पर बिना उफ़्फ़ किए लूटा देते। अम्मा मेरा उजड्डपन देख जहां ग़ुस्सा होती वहीं पापा भाई की पीठ थपथपाते।
इस तरह हम कब बड़े हो गए पता ही नहीं चला। भाई और मेरी शादी भी तय हो गयी। भाई की शादी में भाभी के लिए लाई गई चीज़ों पर मैंने झपट्टा मार लिया और सबने फिर इसे मेरा बचपना ही माना सिवाय भाभी के। पर वो भी चुप ही रहीं, शायद पापा के लिहाज़ से।
मैं अपने घर और भाई अपनी ज़िंदगी में व्यस्त हो गए।
पति मोहन का ट्रान्स्फ़र भाई के शहर के पास हो गया। अब भाई और मेरे शहर में बस से बस एक रात की दूरी थी। भाई की एक प्यारी-सी बिटिया और मेरा प्यारा सा इशु हमारी ज़िंदगी में आ गए। इशु यानी मेरा बेटा और दिशा यानी भाई की बेटी की पहली राखी थी। मैंने भाई से अपने घर आने कहा लेकिन भाई ने मुझे बुलाया और कहा रोमी यानी भाभी का भाई राखी बंधवाने आने वाला है।
बेहतर यही होगा कि मैं ही पहुंच जाऊं। मैं पति से लड़ वहां पहुंच गयी। मेरे तो दिमाग़ में ही ये बात नहीं थी कि बहन भी राखी में भाई को कुछ देती है। अलबत्ता मैं भतीजी दिशा में ख़ुद को देखती थी सो उसके लिए एक पतली सोने की चेन ले ली। भाभी से छोटे उनके चार भाई-बहन थे।
भाभी सबसे बड़ी थीं, उनसे छोटी दो बहनें और दो भाई थे। सारे पढ़ाई कर रहे थे, सबसे छोटा भाई भाभी को बहुत प्यारा था और वो राखी की वजह से पहले से मौजूद था। मेरे सारे सामान पर भाभी से सरसरी नज़र डाली और समझ गयी कि मैं लगभग ख़ाली हाथ ही आयी हूं।
रात को बाथरूम जाने के लिए उठी तो भाई-भाभी के कमरे से आती हुई आवाज़ सुनी, जिसमें बार-बार तुम्हारी बहन शब्द प्रयोग हो रहा था। चुपचाप दरवाज़े से कान लगा जो सुना उसने मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन खिसका दी,“तुम्हारी बहन तो बड़ी लालची और साथ में कमीनी भी है।
मुझे नफ़रत है इस औरत से, तुम भी ना उसकी वक़ालत ना करो। उसे सिर्फ़ पैसों से मतलब है, याद नहीं तुम जो मेरे लिए साड़ी लाए थे शादी के पहले उसने निकाल कर अपने सामान में रख ली थी। जिसके लिए ख़ुद अम्मा ने मुझसे माफ़ी मांगी थी। तुम शादी के पांच साल पहले से नौकरी कर रहे थे।
क्या था तुम्हारे अकाउंट में? अंडा! सब इसी कमीनी पर ही तो लुटाया है। याद करो इसने तुम्हें बाल मज़दूर की तरह उपयोग किया है। साइकल में बिठा-बिठा के सहेलियों के यहां छोड़ते थे। तुम्हें उस घर से मिला ही क्या है? अभी भी जाते हो तो बाप के पैर दबाने लग जाते हो। और तो और टूट-फूट रिपेयर कराने में लग जाते हो। जो तुम्हें रेस्पेक्ट मिलता है वो मेरे यहां ही मिलता है।
मेरी मां सिलबट्टे में हाथ से पीस तुम्हारे लिए दोसा बनाती है। तुम्हारी मां की मिक्सी खराब हुई तो बड़े आये हैं ठीक करवाने के बजाय नई ले दी। मेरा भाई हम तीनों के लिए कपड़े ले आया है। ये घटिया औरत मुझे नफ़रत है इससे, लड़ाकू चुगलख़ोर तुम भी तो बचपन से इससे नफ़रत करते हो। तुमने ही मुझसे बताया था,भूल गए ,आज बड़ा प्यार आ रहा है?”
वो लगातार बोले जा रही थी, इससे आगे सुनने की हिम्मत नहीं थी। भाई जिसे मैं अपना सर्वस्व मानती थी मुझसे नफ़रत वो भी बचपन से। मेरा तो पूरा बचपन एक झटके में ख़त्म हो गया। चुपचाप चादर मुंह पर रख सोने की कोशिश करने लगी। मेरी सिसकियों ने मेरे प्यारे इशु को जगा दिया।
छोटा-सा बच्चा मेरे आंसू पोंछने लगा और अपनी तोतली ज़बान में कहता है,“मम्मा लोना नई इचु हे ना मम्मा का प्याला बेता।” उसे छाती से चिपकाने के बाद भी ख़ुद को इतना असहाय महसूस किया मानो अब इस दुनिया में मेरा कोई नहीं है। अम्मा-पापा से ज़्यादा संतो भैय्या को माना था। ख़ैर जब अपना ही सोना खोटा हो तो किसी से क्या शिकायत।
एक ही रात में मैं नख़रीली बहन से समझदार औरत बन गयी और मन से भाई और मायके से कट गयी। चुपचाप सुबह भाई को राखी बांधी और उसके दिए पांच सौ रुपए चेन के साथ इशु के हाथ से दिशा को राखी बांधने के बाद पकड़ा दिए। दोपहर को भाभी का भाई जा रहा था मैंने फिर चुपके से फिर उनकी बातें उनके बिना जाने सुनी।
भाभी ने उसे अपने सारे घर वालों के लिए ना केवल कपड़े दिए बल्कि पांच हज़ार रुपए और मेरी दी हुई चेन देते हुए कहा,“ये पांच हज़ार से मां के लिए मिक्सी ले देना और वो भी सुमित की। ये चेन छोटी बहन के लिए भेज रही हूं पर हां सुनार से चेक करा लेना। कहीं ऐसा ना हो चांदी पर सोने की पोलिश हो।”
भाई शायद शर्मिंदा हो रहा था बोला,“अरे सवि सुन लेगी ,धीरे बोलो।”
भाई गुर्राई,“सुनने दो मुझे डर है क्या? मैं तो चाहती हूं कि सुन ले और दोबारा कभी हमारे घर ना आए।”
ये बातें भाभी का भाई भी सुन रहा था पर उसने भी अपनी बहन को नहीं रोका।
उसके बाद ख़ुद से मैंने भाई के घर के दरवाज़े ख़ुद के लिए बंद कर लिए। भाई आगे बढ़ता गया मैं पीछे छूटती गयी। भाई से मुलाक़ात अम्मा-पापा के मरने पर ही हुई। पति और बच्चों ने कभी पूछा ही नहीं कि एक रात की दूरी होने पर भी हम मामा के यहां क्यों नहीं जाते। मैंने अपना सारा बचपन उन पच्चीस सालों में क़ैद कर लिया जो मेरी शादी के पहले के थे। मेरी सारी कहानियां यादें वहीं आ कर रुक जाती थीं। आज बेटे के मुंह से लालची और कमीनी सुन मेरे वर्षों पुराने घाव ताज़े हो गये।
मुझे रोता देख फिर इशु मुझे चुप कराने आया। मुझसे कहता है,“आप भी ना मॉम मुझे फ़लक ने कहा इनु को कभी रुलाना नहीं। राखी साल में एक बार आती है। मैं मामा की तरह ख़ुदगर्ज़ नहीं हूं और ना ही फ़लक मामी की तरह नीच। मेरे और इनु के बीच कोई नहीं आ सकता आप भी नहीं।” मेरा सीना अपने बेटे ईशान और उसकी मंगेतर फ़लक के लिए गर्व से चौड़ा हो गया। सालों पहले राखी को ले सीने में बनी गांठें ख़ुद ब ख़ुद खुल गईं।